2 comments on “चलू चली कने काल प्रेमर्षिक साहित्यलोकमे

    • भाइ विकास, रचनाधर्मी तँ स्वयं स्रष्टा कहबैत अछि। ओकरा लेल कृपासन शब्द ओछ बुझाइ छै। कोनो शब्दशिल्पी ब्रह्मपर दोसर केओ की कृपा करतैक? अहाँक रचनासभ देखैत आएल छी। नीक लगैत अछि। ….. लागल रहू, हमर शुभकामना आ शुभभावना सदैव सङ्ग रहत।

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