माथामे घुरछिआइत जब्बर सवाल अछि-
माइएकेर सौत लेल बेटा बेहाल अछि!
जन्म देनिहारिकेँ नोरमे नहाइत छोडि
चमचिकनीक चाम चटैत छौँडा नेहाल अछि
टोपीकेर लोभ देखा माथा बेचबाबए जे
जुनि पुछू मीत केहन शातिर दलाल अछि
प्यासलकेर हाथसँ छीनि लैछ लोटा आ
पटबैछ पानि जतऽ अरिया-उछाल अछि
बूझि गेलै सभकेओ बात जे भीतरिया छै
कतऽ छै जडि आ कथीक ई कमाल अछि!
माए देखि तिरपित होइ अपना सन्तानकेँ
एक-दू पैकार मुदा बाँकी सभ लाल अछि
(लेखन तिथिः २०६८/०१/१९-२७)
[जानकी (मैथिली) दिवसक पूर्वसन्ध्यामे ई गजल परसि रहल छी। कचकूह अवस्थामे परसल गेल ई गजल संरचनागत रूपेँ किछु कमजोर बुझा रहल अछि। जँ एहिमे सुधारक लेल कोनो रचनात्मक सूझाव भेटए तँ आभारी होएब।]
Apnek Tatka Gazal Bahut Nik Lagal
धन्यवाद विनयजी।
apne kat nukayal chhi, bahrau aa maithil aa mithilak haal chal liau.
बहुत बहुत धन्यवाद राज।