झुट्ठो जे नहि डाइन नचौलक ओ भगता ओ धामी की!
एको गाम जँ डाहि ने सकलहुँ तँ ओढने रमनामी की!
अक्षत-चानन, धूप-दीपसँ जतऽ यज्ञ सम्पूर्ण हुअए-
ततऽ जँ क्यो हड्डी रगडैए ओ कामी ओ कलामी की!
बाप-माएपर्यन्त परोसैछ स्नेह जखन बटखारासँ-
नकली सभक दुलार लगैए से काकी से मामी की!
सोनित सेहो शराब बनै छै शासनके सनकी भट्ठी-
दियौ घटाघटि जे भेटए से फुसियाही की दामी की!
पोखरिक रखबारी पएबालए कण्ठी खालि बान्हि लिअ
फेर गटागटि घोँटने चलियौ से पोठिया से बामी की!
बान्हि लङ्गोटा कूदि गेल प्रेमर्षि सेहो अखाडामे
ढाहि सकल ने जुल्म-इमारत ओ जुआरि ओ सुनामी की