मुन्नाजी : धीरेन्द्रजी नमस्कार। स्वागत अछि विदेहक आङनमे। मैथिली साहित्यमे प्रवेश कोना केलहुँ? कोनो विशेष कारण वा किछु आओर?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : सर्वप्रथम धन्यवाद अछि मुन्नाजी जे हमरा विदेहक आङनमे आमन्त्रित कएलहुँ। ई प्रश्न हमरा नीक लागल जे मैथिली साहित्यमे प्रवेश कोना कएलहुँ? असलमे हमर साहित्यमे प्रवेश लौलसँ भेल छल। सेहो नेपाली भाषाक माध्यमे। ई लगभग वि.सं. २०४४ साल अर्थात् १९८७ ईस्वीक समय छल। लौल ई जे हमरो नाम पत्र-पत्रिकामे छपए। ओना मात्र किछु लिखनाइकेँ जँ साहित्य कहल जाए तँ हमर कलमसँ जिनगीमे सभसँ पहिल कोनो रचना मैथिलीएमे लिखाएल छल, जे एकटा फटीचर टाइप गीत रहए। छोटे वयससँ सरकारी नोकरीमे प्रवेश कऽ चुकल हम जखन बदली भऽकऽ जनकपुर गेलहुँ तँ अपन गीत-सङ्गीतक प्रेमकेँ मूर्त्त रूप देबाक लेल कोनो जगहक खोज करबाक क्रममे मिथिला नाट्यकला परिषद् पहुँचलहुँ। ओहिठाम जखन डा. धीरेन्द्र, महेन्द्र मलङ्गिया, डा. राजेन्द्र विमल, योगेन्द्र साह ‘नेपाली’ सन विभूतिसभसँ भेट भेल तखन जा कऽ असलमे हमरा मैथिली भाषाक अवस्था आ महत्ताक बोध भेल। तकरा बाद हमहूँ अपन लेखनप्रतिक लौलकेँ मैथिली साहित्यक अभियानदिस मोड़ि देलहुँ। वि.सं. २०४६ सालमे मिनापद्वारा आयोजित मैथिली विकास दिवसक कविगोष्ठीक लेल कन्हि-कूथिकऽ एकटा कविता लिखलहुँ। ओहिमे डा. धीरेन्द्रद्वारा लाल रोसनाइवला कलमसँ जे सुधारात्मक परिवर्तन-चिह्नसभ लगाएल गेल छल, सएह हमरा लेल मैथिली वर्णविन्यासक गुरुमन्त्र बनि गेल आ हम मैथिलीमे लिखैत चलि गेलहुँ।
मुन्नाजी : अहाँक सभ तरहक रचनामे तीक्ष्ण नजरिया जगजिआर होइछ। एकर की स्रोत वा एहि लेल रचनात्मक ऊर्जा कतऽ सँ वा कोना प्राप्त होइए?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : एकर जवाबमे हम अपने गजलक एकटा शेर कहऽ चाहब–
मनमे ने कनियोँ चोर अछि
तेँ गजलो हमर अङोर अछि
देश, समाज आ अपनाप्रति इमान्दारी लोकमे सहजहिँ तीक्ष्णता आनि दैत छैक। हम ‘खुर्पी छुआ बोनि हुआ’ मे कहियो विश्वास नहि कएलहुँ। हमर रचनात्मकताक स्रोत अपन समाजे अछि। खास कऽ समाजमे रहल छद्मवेषी परिपाटी हमरा बेसी झकझोड़ैत अछि आ उएह हमरा लिखबितो अछि। एखनो विशुद्ध कर्मशीलतापर विश्वास कएनिहार जे किछु लोक छथि तिनकासभक निष्ठा आ लगनशीलता हमरा सृजनात्मक ऊर्जा दैत अछि।
मुन्नाजी : की मैथिलीक अतिरिक्त आनो भाषामे रचना कएलहुँ अछि? मैथिली आ अन्यान्य (विशेष कऽ नेपाली) भाषा मध्य मैथिलीक अस्तित्व केहेन वा कोन ठाम नजरि अबैए?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : हँ, हम मैथिलीक अतिरिक्त नेपाली भाषामे सेहो यथेष्ट मात्रामे लिखैत छी। नेपालक स्नातक स्तरक अनिवार्य नेपालीक पाठ्यपुस्तकमे हमर गजल सेहो पढ़ाओल जाइत अछि। छिटफुट हम हिन्दीमे सेहो लिखैत छी। खास कऽ नेपाली साहित्यक सङ्ग जखन हम मैथिलीक तुलना करैत छी तँ सोच, संवेदना आ शैलीगत रूपमे हमरा मैथिली कनेको झूस नहि बुझाइत अछि। मुदा सङ्ख्यात्मकता आ व्यापकताक हिसाबेँ मैथिली सीमित अछि। नेपाली साहित्यमे मैथिलीजकाँ व्यापक गोलैसीक वातावरण सेहो नहि छैक, जाहिसँ ओकर विकास-गति तीव्रतर बुझाइत छैक। ओसभ वर्तमानकेँ उपलब्धिपूर्ण बनएबामे अधिक दत्तचित्त बुझाइत अछि मुदा हम सभ इतिहासक झुनझुन्ना बजबैत मस्त रहबामे बेसी आनन्दित होइत छी।
मुन्नाजी : अहाँ रचनाक अलाबे सम्पादनमे सेहो सक्रियता देखा चुकल छी। अहाँक नजरिये सृजनकर्ता आ सम्पादकक मध्य की फरक हेबाक चाही?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : हम पल्लव, मैथिल समाज, कामना सिनेमासिक (नेपाली) आदि पत्रक सम्पादन सेहो कऽ चुकल छी। रचनाकार आ सम्पादक दुनूमे फरक की होएबाक चाही से हम नहि कहि सकैत छी। मुदा समान की होएबाक चाही से हम अवश्य कहब। दुनूमे मातृगुण अनिवार्य रूपेँ होएबाक चाही।मुदा मुखरताक दृष्टिएँ रचनाकार देवकी रहए आ सम्पादक यशोदा तँ सृजनरूपी सन्तान नीकजकाँ फौदएतैक, से निश्चित।
मुन्नाजी : सम्पादनमे भाइ-भैयारीबला नजरिया देखाइत रहल अछि। जखन कि सम्पादककेँ निरपेक्ष आ दृष्टि फरीछ होएबाक चाही, की कहब अहाँ?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : सम्पादनमे भाइ-भैयारीवला नजरियाक बात जे अहाँ उठौलहुँ अछि से सही भऽ सकैत अछि। मुदा एकर सापेक्षता देखब जरूरी अछि। मैथिली पत्रकारिता एहन नहि अछि जे साधन-स्रोतसँ सम्पन्न भऽकऽ चलैत होइक। लोक अनेक तरहक भाँज भिड़ाकऽ मैथिलीमे पत्रकारिता करैत अछि। एहनमे बाहरसँ स्वतन्त्र रूपेँ यथेष्ट सहयोग नहि भेटि पएबाक कारणे सेहो सम्पादककेँ भाइ-भैयारीक सहयोग लेबऽ पड़ैत होएतनि। मुदा सम्पादन जेँ कि समीक्षा, समालोचना आदि कार्यक दायित्व सेहो निमाहैत चलैत अछि, तेँ यथासम्भव एहिसँ एकरा दूर राखब उचित। कचोट तँ तखन होइत अछि जखन समालोचना भाइ-भैयारीवला नजरियासँ कएल जाइत छैक।ि
मुन्नाजी : अहाँ विभिन्न तरहक कार्यक्रम (आकाशवाणी वा दूरदर्शन) माध्यमे प्रस्तुति दैत रहलहुँ अछ, की एहिमे रोजगार छै? अपनाकेँ एहिमे कतऽ पबैत छी?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : नीकजकाँ समर्पित भऽकऽ लगलापर आजुक समयमे सभ क्षेत्रमे रोजगारी छैक। तखन आकाशवाणी वा दूरदर्शन तँ आओर बहुतो लोकक स्वप्न-संसार सेहो छियैक आ आजुक समयक सर्वाधिक सशक्त हथियारो। एहिमे रोजगारी नहि होएबाक बाते नहि अबैत अछि। हम पूर्ण रूपेँ एहिसभ क्षेत्रमे कहियो आश्रित नहि रहलहुँ। हम नेपालक सरकारी आकाशवाणी रेडियो नेपालमे १३ वर्ष धरि मैथिली, हिन्दी आ नेपालीक समाचार वाचनमे संलग्न रहलहुँ। तहिना पछिला एक दशकसँ नेपालक सभसँ पैघ रेडियो नेटवर्क रेडियो कान्तिपुरसँ जुड़ल छी आ हेल्लो मिथिलासहित किछु कार्यक्रमक सञ्चालन करैत आएल छी। तहिना समय-समयपर टेलिभिजनक विभिन्न कार्यक्रम आ सिरियल सेहो करैत आएल छी। हमर रेडियो नेपालसँ जुड़ाव तँ एकटा सरकारी नोकरीक रूपमे छल। मुदा एहिसभ काजमे हमर अभीष्ट मैथिली भाषा-संस्कृतिक सम्मान आ सम्बर्द्धन रहैत अछि। एकरे ध्यानमे राखि १० वर्ष पहिने हमसभ रेडियो कान्तिपुरमे हेल्लो मिथिलाक शुरुआत कएने रही। एहिमे हमर आवद्धता लगभग स्वयंसेवकीय छल। मुदा हम लागल रहलहुँ। तकर परिणाम ई छैक जे हमर रोजगारीमे आंशिक सहायक तँ ओ भेले अछि, आइ नेपालमे कमसँ कम पाँच सय गोटे खालि मैथिलीएमे बाजिकऽ रोजीरोटी कमा रहल छथि। तेँ एहि मादे हम एतबए कहब जे पूर्ण लगनशीलताक सङ्ग जँ हमसभ बालुओ पेरैत रहब तँ एक ने एक दिन ओहिमेसँ तेल बहरएबे करतैक।
मुन्नाजी :अहाँ विभिन्न प्रकारक क्रियाकलाप वा गतिविधिमे लागल रहैत छी। अपनाकेँ समेटि रखबामे किछु बाधक तँ नहि होइत छैक?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : कहियो काल अवस्था एहन अवश्य भऽ जाइत अछि जे पीठकेँ झँपैत छी तँ माथा उघार आ माथा झँपैत छी तँ पीठ उघार। मुदा समयक सीमित चादरिक व्यवस्थापन करैत माथ आ पीठ दुनू झाँपि लेबामे जे आनन्द अबैत छैक से वर्णनातीत होइत अछि। तेँ बेसीदिस छिड़िअएनाइकेँ सेहो हम अपन सफलताक द्योतक मानैत छी। हँ, एहिदिस साकांक्ष जरूर रहैत छी जे बेसीदिस छिड़िआकऽ कहीँ हमर अभियान तँ लचर नहि भऽ रहल अछि! हम ओ सभ काज करैत रहैत छी जाहिसँ बुझाइत अछि जे ई काज कएलासँ हमर मैथिली एको डेग आगाँ ससरत। जहिया हमरा ई बुझबामे आएत जे ई काज कएने हमर मैथिलीकेँ क्षति भऽ रहल छैक तँ ओ काज हम ठामहि रोकि देबैक। हमरा एखनधरि किछु विशुद्ध पूर्वाग्रही वा अपरोजक-अपाटकसभकेँ छोड़ि केओ एहन सङ्केतो नहि देने अछि, तेँ अपनाकेँ चहुँदिस सक्रिय रखने छी।
मुन्नाजी : रूपा भौजी, धीरेन्द्र भैयाक कार्यक्रमसभमे सेहो अर्द्धांगिनी बनि देखार भेलीह अछि। एकरासभक अतिरिक्त अहाँसँ स्वतन्त्र कोन-कोन गतिविधिमे सक्रिय रहैत छथि?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : स्वतन्त्र रूपेँ सभसँ प्रमुख तँ रूपा एक कुशल गृहिणी छथि। कविता-कथा लिखैत छथि। कम लिखैत छथि, मुदा हुनकामे समाज आ संवेदनाकेँ धरबाक जे कला आ सामर्थ्य छनि से विलक्षण। गीत गबैत छथि, सेहो हुनक स्वतन्त्र क्षेत्र छनि। नेपालक वर्तमान राष्ट्रगानक एक गायिका रूपा सेहो छथि। मैथिल महिला समाजक सचिव आ विभिन्न महिला समाजक सल्लाहकार भऽ कऽ ओ अनेक काज कऽ रहल छथि। नारी जागृति सम्बन्धी कतेको काजमे ओ नेतृत्वदायी भूमिका निर्वाह कऽ रहल छथि।
मुन्नाजी : मिथिला (बिहार) आ नेपालमे कोनो मैथिली गतिविधिक रासि अगड़ा जातिक हाथमे रहल अछि। मुदा नवम सदीमे पिछड़ल जातिक धर्रोहिक सक्रिय प्रवेश भेल अछि। एकरा भविष्यमे कोन नजरिये देखैत छियैक?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : अहाँ बिहारक नजरियासँ देखैत ई बात कहने होएब। मुदा नेपालक अवस्था किछु भिन्न अछि। नेपालक मैथिली गतिविधिक जँ बात करब तँ एहिठाम अगड़ी-पछड़ीवला बात हमरा बेतुका बुझाइत अछि। नेपालमे तँ बहुत पहिनहिसँ मैथिली गतिविधिक रासि अहाँक आशय रहल तथाकथित पछड़ी जातिक डा. रामावतार यादव, डा. योगेन्द्रप्रसाद यादव, डा. रामदयाल राकेश, डा. गङ्गाप्रसाद अकेला, रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’, योगेन्द्र साह ‘नेपाली’, परमेश्वर कापड़ि, रामाशीष ठाकुर, मदन ठाकुर, रामनारायण ठाकुर, महेन्द्र मण्डल ‘वनवारी’ सँ लऽकऽ नवतुरियोमे अमरेन्द्र यादव, अमितेश साह, नित्यानन्द मण्डल, शीतल महतोसदृश लोकक हाथमे छनि। जँ संस्थागत गतिविधिक बात करब तँ मात्र सप्तरी जिलामेटा पचाससँ अधिक मैथिलीसँ सम्बन्धित सङ्घ-संस्था भेटत, जकर पदाधिकारीसभ कथित पछड़ा वर्गक छथि। प्रायः इएह कारण छैक जे नेपालक मैथिली गतिविधि जतबए छैक, जड़ि धएने छैक। प्रायोजित नहि बुझाएत एहिठामक मैथिली गतिविधि। अधिकांश भारतीय मैथिली अभियानीसभजकाँ नहि जे कहब मैथिलीक कार्यकर्ता आ हिन्दीक कनेक अक्षत भेटि जाए तँ ओहीपर तर-उपर होइत रहनिहार वा घरमे हिन्दीक प्रयोगकेँ प्रतिष्ठा बुझनिहार।
रहल बात एहि सदीमे बिहारोदिस ब्राह्मण आ कायस्थेतर जाति जँ मैथिली गतिविधिमे आगाँ आबि रहल छथि तँ ई मिथिला-मैथिलीक लेल सौभाग्यक बात छियैक। कारण यथार्थमे जँ देखबैक तँ कथित अगड़ीसभ तँ मैथिलीकेँ रङ्गटीप मात्र करैत आएल छथि, अपन दैनन्दिनीमे मैथिलीकेँ यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रयोग करैत यथार्थमे एकरा जीवन देनिहार तँ कथित पछड़ेसभ छथि। ओ सभ जँ पूर्ण सचेष्ट भऽकऽ लागि जाथि तखन तँ मैथिलीक लेल ककरो नोर बहबैत रहबाक कोनो प्रयोजने नहि रहि जएतैक।
मुन्नाजी : अहाँद्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमसभ सतही वा व्यावसायिक पूर्ति मात्रकेँ इङ्गित करैए, की कहब अहाँ?
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : अपन गायकी वा सङ्गीत, अभिनय वा कार्यक्रम सभकेँ हम साहित्य वा रचना मानैत छी आ ताही भावसँ ओकरा हम कार्यरूप सेहो दैत छियैक। एहनमे हम अहाँक प्रश्नसँ कने असमञ्जसमे पड़ि गेल छी। दोसर नम्बर प्रश्नमे अहाँ ई कहैत छी जे ‘अहाँक सब तरहक रचनामे तीक्ष्ण नजरिया जगजियार होइत अछि’। फेर किछु आगाँ चलिकऽ अहाँ कहैत छी जे ‘अहाँक कार्यक्रम सतही होइत अछि’। चलू जँ सतहीयो होइत अछि तैयो हम एहि बातसँ प्रसन्न छी जे अहाँसन गम्भीर व्यक्ति एक सतही कार्यक्रम चलबैत मात्र व्यावसायिक पूर्ति करऽ वलाकेँ एहन गूढ़ प्रश्न पुछबाक योग्य व्यक्ति मानलहुँ। हमरा लेल इएह सभसँ पैघ उपलब्धि अछि।
मुन्नाजी : अपन अगिला योजना की अछि? कोनो विशेष क्रियाकलापक योजना हुअए तँ उल्लेख करी।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : निकट भविष्यक मूलतः तीनटा प्रमुख योजना अछि। पहिल पल्लव पत्रिकाक पुनर्प्रकाशन। दोसर नेपालमे महाकवि विद्यापतिकेँ राष्ट्रिय विभूति घोषणा करएबाक लेल अभियानक सञ्चालन आ तेसर अपन मैथिली गजलसङ्ग्रहक प्रकाशन।
मुन्नाजी : मैथिली क्रिपाकलापसँ जुड़ल युवा/युवतीक लेल की सन्देश देबऽ चाहब।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : जे युवा मैथिली क्रियाकलापसँ जूड़ि गेल छथि तिनका किछु कहबाक प्रयोजने नहि अछि। किएक तँ वर्तमानमे बाँकी सभदिस अवसरक झमाझम वर्षा भऽ रहल समयमे सेहो जँ केओ स्वेच्छासँ मैथिलीसन सूखाग्रस्त क्षेत्र चुनैत छथि तँ अनेरे नहि किछु सोचिएकऽ, किछु बूझिएकऽ। ओहुना एखनुक युवा बहुत बुझनुक छथि। हँ, किनको-किनकोमे ई देखबामे अबैत अछि जे सोचलसन उपलब्धि चटपट हासिल नहि भेलापर कने निराश भऽ जाइत छथि। बस अहीठाम कने हिम्मत बन्हने रहबाक जरूरति छैक। हमसभ मैथिलीमे जँ लागल छी तँ अपन माटिक प्रबल प्रेमसँ वशीभूत भऽकऽ। एहि प्रेममे सरिपहुँ आन कोनो प्रेमसँ बेसी डूबि जाइ। मुदा प्रेम शब्द सुनबामे जतेक सहज छैक, निमाहऽ मे ओतेक किन्नहु नहि छैक। तेँ ने एकटा हिन्दी गीतमे कहल गेल छैक¬
ये इश्क नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजै,
एक आग का दरिया है इसे तैर के जाना है।
बस एतबा बात जँ बूझि गेलहुँ आ एतबा धीरज सेहो धारि लेलहुँ तँ हमसभ तरहत्थीमे सेहो दूभि जनमा सकैत छी।
मुन्नाजी :धन्यवाद धीरेन्द्रजी अपन स्वतन्त्र विचार देबाक लेल।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि : एहि अवसरक लेल मुन्नाजी अहाँक सङ्ग-सङ्ग विदेह परिवारक सेहो हम आभारी छी।
sargarbhit sakshatkaar padhi aanandit bhelahun…
sampurn varta padhlahun badd sudar lagal………….khas ka dhirendra bhaijik prarambhik anubhav bara rochak lagal………….laul shabdak prayog…………..vastav mein prarambh mein sabh ke laule laagal rahai chhai muda jakhan pratibha samaksh abai chhai ta samaj ke okar vastaviktak anubhuti hoit chhaik aa okar yogdan sa samaj rini bh jait chhaik………kichhu ohen san bhavansh bujhi paral etek sundar vartalapak kram mein…………….hamhu ekhan laulavastha mein chhi tain parmadarniy sh. dhirendra bhaijik aashirvachnak aakanchhi chhi……………munna jik seho dhanyavad je ehen kalampuroddhak goodh-goodh gapp sab samaksh aani prastut kayal.
नीक लागल बौआभाइ अहाँक प्रतिक्रिया। अखन मैथिलीमे हृदयसँ अभिव्यक्ति देनिहारसभक सेहो अभाव भेल जा रहल अवस्थामे अहाँक ई शब्दसभ हमरा आओर उत्साहित कएलक अछि। धन्यवाद।