गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि नेपालीय मैथिली गीत-संसारक प्रायः सभसँ मूल्यवान उपलब्धि थिकाह— विविधतामय विषयक दृष्टिएँ, संख्यात्मकताक दृष्टिएँ, उच्च काव्यमूल्यक दृष्टिएँ, विविध शिल्प-प्रयोगक दृष्टिएँ, विविध अलङ्कार, गुण, रस, भाषिक प्रयोगक दृष्टिएँ, शैलीगत विविधताक दृष्टिएँ, सामाजिक सचेतताक दृष्टिएँ आ सभसँ बढ़िकऽ मस्तिष्क आ हृदयक सुन्दर सहयात्राक दृष्टिएँ। हिनक गीतसङ्ग्रह ‘कोन सुर सजाबी?’ क गीतसभमे प्रेमतत्त्व, व्यङ्ग्यतत्त्व, वेदनातत्त्व, नवरसतत्त्व, उद्वोधनतत्त्व, आख्यायिका-तत्त्व, सामाजिक-तत्त्व, धार्मिक-तत्त्व, राजनीतिक-तत्त्व, सांस्कृतिक-तत्त्व आदि विविध तत्त्व मिलाकऽ जे कलात्मक रूपाकृति गढ़ल गेल अछि से विलक्षण थिक। हमरा आन गीतकारक किछु गीतक किछु पंक्ति भीतरधरि छूबैत अछि, मुदा धीरेन्द्रक बहुतो गीतक प्रायः सभ पंक्ति मर्मकेँ बेधि जाइत अछि। जीवन-जगतक यथार्थ शक्ति आ सम्भावनाक प्रति अदम्य निष्ठा एवं सजगतासँ पोनगल आन्तरिक आ वाह्य सौन्दर्य जखन सुरमे सजैत अछि तँ जेना चेतनाक लहरिकेँ लयबद्ध कऽ लैत अछि। जीवनक कियारीमे फुलाइछ सत्य आ सौन्दर्यक फूल जे प्रत्येक रूप-रङ्गमे मङ्गलकारी थिक। परिवेशक यथार्थबोध हेतु आवश्यक वैज्ञानिक दृष्टिक विरोधमे ठाढ़ भेल कुण्ठित सौन्दर्यबोधसँ बेसी तकर साहचर्यमे परिमार्जित आ विकसित सौन्दर्य-चेतनाक कारणेँ गीतकारक सहज प्रेमोच्छ्वासो कोनो अदृश्य चन्द्रलोकसँ आएल नहि, हृदय किंवा धरतीसँ उपजल लगैछ।
कविमे सौन्दर्य-चेतनाक इन्द्रधनुषी रङ्ग यत्र-तत्र-सर्वत्र छलकि उठल अछि से सत्य, मुदा सौन्दर्यक रसग्राह्यता मिथिलाक धरती आ संस्कृतिक प्रति सहज संस्कारक रूपमे विकसित मधुर अनुरागसँ अभिप्रेरित अछि। बहुजन-रञ्जनक सङ्ग बहुजन-मङ्गलक भाव हिनक अनेक गीतक संवेदनाकेँ समसामयिक आ सतत गतिशील सत्यक संवाहक बना देने अछि, मुदा तौँ ओ देश-कालक अन्तर्सत्यसँ आबद्ध अछि। स्पष्ट कही तँ हिनक समकालीनता परिवेशजन्य अन्तरङ्ग क्षणक अभिव्यक्ति थिक। हिनक भाषा, भङ्गिमा, भावबोध, छन्द, लयमे एतेक नवीनता आ ताजापन एहि दोआरे बूझि पड़ैछ जे ओ सद्यःजात कमलक फूलसन टटका अछि, जकर जड़ि भने परम्परामे होइक, मुदा प्रस्फुटन नितान्त मौलिक छैक।
धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतसभकेँ निम्नलिखित कोटिमे वर्गीकृत कएल जा सकैछ— १) श्रम, सङ्घर्ष, आस्थाक गीत २) मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत ३) सौन्दर्य-चेतना आ प्रीतिक गीत ४) चिन्तनपरक दार्शनिक गीत ५) माटिपानि आ सामाजिक राजनीतिक सचेतताक गीत।
१. श्रम, सङ्घर्ष, आ आस्थाक गीत : जीवनक अरण्यमे काँट छैक तँ फूलो छैक, पतझड़ छैक तँ बसन्तो छैक, ग्रीष्म-प्रदाह छैक तँ छाहरिक शीतलतो छैक। जीवनकेँ स्वीकार करबाक लेल ओकर सम्पूर्ण यथार्थकेँ स्वीकार कऽ उत्साहक सङ्ग जीबऽ पड़तैक। विडम्बनापूर्ण जीवनक ई स्वीकृति आ जिजीविषा गीतकारकेँ काँटक बीच फूल खोजबाक प्रेरणा आ उत्साह दैत छन्हि—
चारि दिनक ई जीवन-धाम
हरखक पल ताहूमे बाम
कलिका खोँटिकऽ फेकैत हम
ताकि रहल छी फूलक गाम
ई धरती, एकर उत्सव आ शोक, स्मिति-अश्रु, जय-पराजय प्राणवन्तताक प्रमाण थिकै, तेँ कोनो कल्पना-कुहरमे भटकैत सत्य-सूर्यक खोज करब बतहपनी छैक। सृष्टिक गर्भसँ जनमल सत्य मात्र गीतकारकेँ स्वीकार छन्हि—
सत्यक जननी सृष्टि तमाम
कर्मक सिञ्चन हम्मर काम…..
प्रेमर्षि श्रमहीन जीवनकेँ जिनगीक भ्रम मानैत छथि आ शोषणपर आधारित जीवन-व्यवस्थाक विरुद्ध छाती तानि ठाढ़ भऽ जाइत छथि। शोषणक विरुद्ध केहन घृणा छन्हि प्रेमर्षिक मोनमे—
गामक गाम उजाड़ि बनाओल
महल-अटारी नइ चाही
देशक खून आ गरीबक आहसँ
भरल बखाड़ी नइ चाही
लाखोक धूर निलामीक जनमल
एक जिमदारी नइ चाही…..”
एहन अवस्थामे ओ कहैत छथि— हमरा अपन गरीबियो बरदान लगैए…..
गरीबक जिनगीक केहन मार्मिक शब्दचित्र प्रस्तुत कएने छथि प्रेमर्षि—
पीठकेँ झँपैत छी तँ माथा उघार
माथकेँ झँपैत छी तँ पीठहि उघार
चूनि-चूनि खढ़पात खोँता बनाबी
चुबिते रहि जाए तैयो जिनगीक चार……
२. मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत : मनुक्ख अनेक स्तरपर एक-दोसराक रागतन्तुसँ बन्हाएल अछि। नितान्त वैयक्तिक स्तरपर, पारिवारिक स्तरपर, सामाजिक स्तरपर, राष्ट्रिय स्तरपर, अन्तर्राष्ट्रिय स्तरपर, ब्रह्माण्डीय स्तरपर। राग-विरागक ई खेल चिरन्तन थिक, सार्वभौम थिक। जाधरि मनुक्ख जीवित अछि, नेह-छोहक एहि रेशमी बन्धनकेँ तोड़ि फेकब ओकरा हेतु दुःसाध्य थिकै। एहि रागात्मकताकेँ प्रेमर्षि जीवनक स्पन्दन, प्राणज्योति, अपरिहार्य अङ्ग-रङ्ग मानैत छथि—
बीस बरखा टेरलिङिया कुरता
तैपर साटल चेफरी छै
शीतलहरीमे ओक्कर ओढ़ना
पोतीक फेकल केथरी छै
सोना गढ़िकऽ इएह फल पौलक
अपने बनि गेल ताम-सन
वाह बुढ़बा तैयो बाजैए
हम्मर बेटा राम-सन….
अद्वितीय !! ई सम्बन्ध-बन्ध अपराजेय आ अमर रहए, भगवान !!
३. सौन्दर्य-चेतना आ प्रीतिक गीत : कोनो राजनीतिक वादक झण्डातर बैसि गीतकेँ विज्ञापन वा प्रचारक माध्यम बनबैत अथवा अनुभवशून्य विषयपर शब्दक कलाबाजी देखबैत जीवानुभव वा जीवनसत्यक दिससँ शुतुरमुर्गी शैलीमे आँखि मुननिहार गीतकार नहि थिकाह प्रेमर्षि। तेँ ओजस्वी भावनाक हथौड़ासँ शब्दकेँ लोहारजकाँ पीटि-पीटि सङ्घर्षक हेतु फरसा आ गड़ाँस बनबैत प्रेमर्षि जखन छेनीसँ पदावलीकेँ तरासैत सोनारजकाँ रचि-रचिकऽ पे्रयसीक हेतु कोमल कण्ठहार बनबैत छथि तँ हमरा कृष्णक कुरुक्षेत्रक योद्धारूप आ वृन्दावनक रासलीला रचबैत प्रेमीरूप एक्कहिबेर मोन पड़ि जाइत अछि।
शृङ्गारक दुनू भेद— संयोग आ विप्रलम्भक मोहक चित्रण हिनक गीतमे भेटैत अछि—
प्रेमक घटसँ जते निकाली
जलक हुअए ने अन्त
हमर अहाँकेर प्रेमक चिड़िया
भऽ गेल बेस उड़न्त…….
४. चिन्तनपरक किंवा दार्शनिक मुद्राक गीत : चिन्तन जखन भावनाक तलपर आबि गाबऽ लगैछ तँ उच्च कोटिक गीतक जन्म होइत छैक। प्रेमर्षिक किछु गीतमे चिन्तनक जे चिनगी दहकैत अछि से जिनगीक चरम सत्यधरि लऽ जाइत अछि—
जीवन थिक मेला दू दिनमा
ई इर्ष्या-द्वेष किए प्राणी
आखिरमे देह गलिए जएतह
बस रहि जएतह अमृत वाणी…..
वन-वन बौआइत अछि
कस्तूरीक टोहमे मृग जहिना
सदिखन औनाइत अछि
माया आ मोहमे मन तहिना…..
५. माटि-पानि आ सामाजिक-राजनीतिक सचेतताक गीत : धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतमे जयदेवक कृत्रिम कलात्मकता नहि, विद्यापति गीतक सहज कलामय तन्मयता अछि। तेँ ई गीतसभ मिथिलाक सुगन्धसँ महमह करैत अछि। मिथिलाकेर व्यथा दहेज, नवका साल पुरने हाल, जनतन्त्रक बहाली, जय हो पेट धरमवीर, हे देखियौ हमर समाजमे, ओ बमभोला, सत्ताक माछ, देशी मुर्गा बिलाइती बोली, जागरण गीत एहि कोटिक गीत थिक। एहि गीतसभमे अत्यन्त तीक्ष्ण व्यङ्ग्य अछि—
बम भोला
छोडू भङगोला
जँ पियब अछि अति आवश्यक
पीबू कोकाकोला…..
मुर्गा देलक बाङ
दुलरिया दारू ला……
पहिने डबरा-खत्ता घुमी
भेटए बस गरचुन्नी
बाँटैत-चुटैत पबैत छलियै
एक्कहि-दूटा कुन्नी
एहिबेर पोखरिक जीरा भेटल
सटि गेल ठोरमे
आब तँ मोन परकि गेल हम्मर
माछक झोरमे………..
दूर्गापूजा डी.पी. बनि गेल
भरदुतिया राखीतर दबि गेल
जुड़शीतल शीतलहरीक मारल
हैप्पी न्यू इयर बस फबि गेल
बम फटाक फुलझड़ीक बीचमे
डूबि गेल हुक्का लोली
देशी मुर्गा बिलायती बोली…..
एहि सभ गीतक उचित मूल्याङ्कन मैथिल संस्कृतिक गवाक्षसँ निरखिकऽ करब बेसी उचित होएत। कारण हुनक गीत-संसार सोरसँ पोरधरि मैथिल संस्कृतिक रङ्गमे सराबोर अछि। एत्तऽ धरि जे उपमोसभ खाँटी मैथिल भूमि, जीवन, समाज वा संस्कृतिसँ लेल गेल अछि—
भेल प्रेमक रौदी एहि जगमे
तेँ धधकए सभतरि दावानल
जुड़शीतलक जल-थपकीसन
बरिसाउ प्रिये कने प्रेमक जल…….
सुच्चा मैथिल गीत थिक— अछिञ्जल-सन पवित्र ! एकटा पाँती देखल जाए—
भौजीकेँ बस कोबरे भाबनि
मुदा दियरसभ आबि सताबनि
भैया बहाने काल भगाबथि
बारहमासा गाबि सुनाबथि………
गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मादे टिप्पणी दैत नेपाल राजकीय प्रज्ञा-प्रतिष्ठानक उपकुलपति, नेपाली समीक्षाशास्त्रक युगपुरुष, प्रकाण्ड विद्वान प्रा.डा. वासुदेव त्रिपाठी उचिते लिखलैन्हि अछि— “करीब सैँतीसे वर्ष (तत्कालीन) क लहलहाइत उमेरमे अनेक विधा आ क्षेत्रमे रहल हुनक साधना आ तकर विस्तृत आयामक अवलोकन कएलापर हमरालोकनिक मोनमे सहजहिँ महान नेपाली साहित्य-स्रष्टा मोतीराम भट्टक स्मरण भऽ अबैछ।” मैथिलीक एहि मोतीरामपर मिथिला-मैथिलीक इतिहास सर्वदा गर्व करत से हमर अटल धारणा थिक।